Friday, July 31, 2020

Meera Ke Pad

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

Surya Kant Tripathi (Nirala)

बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।

Meera Ke Pad

हरि आप हरो जन री भीर। द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर। भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर। बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर। दासी मी...